۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
हकीम मौलाना मुर्तज़ा रिज़वी बलयावी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हकीम मौलाना मुर्तज़ा रिज़वी बलयावी सन 1332 हिजरी बमुताबिक़ 1912ई॰ सरज़मीने हुसैनाबाद ज़िला बलया पर पैदा हुए(ज़िला बलया,उत्तरपरदेश और बिहार के दरमियान वाक़े है जिसका शुमार उत्तरप्रदेश में होता है) मोसूफ़ के वालिद हकीम मौलाना सय्यद मुमताज़ हुसैन रिज़वी बलयावी का शुमार अपने वक़्त के जय्यद औलमा में होता था।

हकीम मौलाना मुर्तज़ा का ताल्लुक़ इल्मी ख़ानवादे से है, आपने इब्तेदाई तालीम अपने घर पर हासिल की उसके बाद आज़िमे लखनऊ हुए और जामिया सुलतानया में रहकर जय्यद असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ करके “सदरुल अफ़ाज़िल” की सनद हासिल की, सुलतानया से फ़रागत के बाद “मदरसतुल वाएज़ीन” पोंहचे और मशहूर वा मारूफ़ असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ करके वाईज़ की सनद हासिल की।

मौलाना मुर्तज़ा रिज़वी ने इलमे तिब के माहेरीन से तिब की किताबें पढ़ीं और इस फ़न में महारत हासिल कर ली, सन 1944 ई॰ में आज़िमे अहमदाबाद हुए और “अंजुमने फैज़े पंजेतनी” जमालपुर अहमदबाद की मस्जिद में इमामे जमाअत की हैसियत से पहचाने गये।

सन 1965 ई॰ में गुजरात से अफ्रीक़ा का रुख़ किया और वहाँ के मुखतलिफ़ ममालिक तंज़ानया, कीनया, टानिका और दारुस सलाम वगैरा में सन 1970ई॰ तक तबलीगी व तदरीसी फ़राइज़ अंजाम दिये और उसी साल अहमदाबाद गुजरात वापस आ गये और फ़िर “अंजुमने फ़ैज़े पंजेतनी जमालपुर अहमदाबाद गुजरात” की मस्जिद में इमामे जमात के फ़रीज़े को 36 साल तक बनहवे अहसन अंजाम देते रहे।

मोसूफ़ आलिमे बाअमल, मुत्तक़ी और परहेज़गार इंसान थे, आपके नवासे मौलाना खुर्शीद अब्बास रिज़वी बलयावी बयान फ़रमाते हैं कि मोसूफ़ के बहुत से वाक़ेआत हैं जो उनकी परहेज़गारी पर दलालत करते हैं, मैंने अपने बुज़ुर्गों से सुना है: मौलाना मुर्तज़ा रिज़वी ज़ियारत की गरज़ से इराक़ तशरीफ़ ले गये और शबे जुमा “मस्जिदे सहला” में  आमाल और इबादात को देर रात तक अंजाम देते रहे, रात काफ़ी गुज़र चुकी थी मस्जिद से बाहर निकले  और होटल की तरफ़ रवाना हो गये काफ़ी देर चलने के बाद होटल तक ना पोंहच सके तो महसूस किया कि राह भटक गये हैं लिहाज़ा वहीं खड़े हो गये अचानक एक मरदे अरब आपके सामने आकर खड़ा हो गया और बोला : मुर्तज़ा रिज़वी मैं तुम्हें तुम्हारी मंज़िल तक पोहचा दूँ अपने साथ सवारी पर सवार किया  और कहा आज रात का खाना मेरे साथ मेरे घर पर खाओ आपने जवाब दिया मेरा खाना होटल में रखा है अगर आपके यहाँ खाना खाऊँगा तो वो इसराफ़ हो जाएगा, अभी बात मुकम्मल नहीं होने पाई थी कि मौलाना मोसूफ़ ने देखा अपने होटल के सहन में मोजूद हैं और पलक झपकते ही वो अरब नज़रों से गायब हो गया आप सोचने लगे कि मैं इमामे वक़्त से मुलाक़ात की गरज़ से अमल अंजाम दे रहा था, ये इमाम ही थे और मेरी आँखों पर पर्दे पड़े थे, आख़िर मैं नाम के साथ पुकारने और बात के तमाम होने से पहले ही सहने मंज़िल में पोहुचने के बावजूद मुतवज्जो क्यों ना हुआ।

मोसूफ़ को अल्लाह ने 6 नेमतों और 5 रहमतों से नवाज़ा बेटों के नाम कुछ इस तरह हैं: सय्यद मोहम्मद इरतेज़ा, सय्यद मोहम्मद इजतबा,सय्यद मोहम्मद मुजतबा, सय्यद मोहम्मद ज़िया  और दो बेटे अलमुल हुदा और सय्यद नूरूल हुदा आपकी हयात ही में आलमे शबाब में इंतेक़ाल फ़रमा गये थे, आपने सारे बच्चों को इल्म वा अदब से आरास्ता किया और सारी औलाद अहमदाबाद गुजरात में क़याम पज़ीर हो गई।

आखिरकार ये मुबल्लिग व आलिमे बा अमल 16 ज़िल्हिज्जा सन 1400हिजरी बमुताबिक़ 1980 में महल्ला जमालपुर  अहमदाबाद गुजरात में हमेशा के लिए सो गया, मोमेनीन की कसीर तादाद आपके दोलतकदे पर ताज़ियत वा तसलियत के लिए जमा होने लगी, गुस्ल वा कफ़न के बाद नमाज़े जनाज़ा अदा की गई और अहमदाबाद के महल्ला सारंगपुर में मोजूद “बाक़िर शाह” नामी क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया

   माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-2 पेज-172 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2020 ईस्वी।  

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